रविवार, 20 अप्रैल 2014

स्वनाम धन्य झांसी

स्वनाम धन्य झांसी भारत के ह्रद्य स्थल उत्तर प्रदेश- बुन्देलखंड नामी क्षेत्र में अपनी प्रशंसनीय कार्यगाथा के माध्यम से विश्व पटल पर कभी 'झांई सी' दिखने वाली नगरी महान झांसी का नाम कोहिनूर हीरा के रूप में चमचमाता रहा है, और प्रगतीशील है...

 'झांसी' वीरता, विद्वता, सतरंगी आकर्षक गतिविधियों के लिये सराहनीय है, महारानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई, गुलाम गौस खां, चन्द्र शेखर आजाद, भगवान दास माहौर, श्री धुलेकर जी, मैथली शरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी, लोक कवी ईश्वरी, व्रन्दावन लाल वर्मा आदि ने कर्म- सेवा- पूजा-लेखन- गायन अनेकों सभी विधाओं में झांसी का नाम रोशन किया है..

झांसी पुरातन किलों, गढी, फाटकों, प्राचीरों, मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों, तालाबों, बगीचों, मजारों, समाधि स्थलों की शोभाओं और संदेशों से इतिहास में शिखर पर है... समय समय पर यहां के मेलों महोत्सवों सम्मेलनों से भाईचारा, शान्ती का झंडा सदा लहराता रहता है...

यहां के सम सामयिक लोक देवताओं से खाती बाबा, लोक नायक हरदौल जू, स्टेशन वाले सैय्यद बाबा आदि आज भी जनमानस को खुशियों, सदभाव और एकता की डोर से बांधे हुए हैं...

यहां के सिध्द पीठ-मंदिर जैसे लहर वाली माता, मैमासन माता व नाग मन्दिर तथा गायत्री पीठ, लक्ष्मी व्यायाम शाला, नारायण बाग, मेहंदी बाग, झौकन बाग (जिसमें मेमोरियल बैल है)डायमंड सीमेंट, थर्मल पावर, बुन्देलखंड यूनीवर्सिटी, रानी लक्ष्मी बाई मेडीकल कालेज, गुरुद्वारे, पानी वाली धर्मशाला, संग्रहालय, शनी मन्दिर, गुसाइयों-वैरागियों की समाधियां-मन्दिर सखी के हनुमान सिध्द पीठ आदि तमाम विरासतें अपनी प्राचीन और आधुनिक खट्टी मीठी, तीखी एवं दुखद यादों के प्रतीक हैं और नवीनी करण के लिये सावधान रह कर उचित दिशा में बढने को प्रेरित कर रहे हैं...

इस प्रकार अम्रतमयी सरिता वेत्रवती (बेतबा)-पुष्पावती (पहुंज) के आंगन में सुरम्य पहाडियों के मध्य बेर, मकौका, करौंदा, ककोरा, करधयी, तेंदु की खुशबुओं से भरपूर, जी. आई. पी. रेलवे वर्तमान में एन.सी.आर. , सडक परिवहन विकास के आगौस में असीम पर्यटन सम्भावनाओं के साथ लोकतंत्र के प्रखर सजग प्रहरी के रूप में 'झांसी' अपने अनोखेपन से बुन्देली परम्पराओं, शैलीयों मान मर्यादओं के साथ-साथ राई, मौनिया न्रत्यों टेसु आदि स्वांगों, भित्ति आलेखों के साथ खुशी खुशी आगे बढ कर बुलन्दियों की ओर है और पान का बीडा खा कर चुनौतियां झेल रही है

अतएव !! जय झांसी, जय जय झांसी वाले!!
!!जय हिन्द!!

द्वारा : श्री राम क्रष्ण मिश्रा

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

बुन्देलखण्ड की शान झांसी

झांसी एक खूबसूरत शहर है, यहां कई संस्क्रतियों का संगम है, यहां मराठी समाज है तो काली बाडी भी है, एशिया का सबसे बडा चर्च है तो स्टेशन वाले बाबा की मजार पर गुरुवार को दर्शन के लिये लगने वाली लम्बी लाईन भी है, गणेश उत्सव और उस से २०-२५ दिन बाद ही नव दुर्गा यहां खूब धूमधाम से मनाया जाता है, लोग अंग्रेजी नव वर्ष की शुरुआत भी राम राजा सरकार के दर्शन से करते हैं, नव देवी, गणेश जी की स्थापना हो या अग्रसेन महाराज की जयंती, सिक्खों का गुरु पर्व या सेंट ज्यूड फीस्ट या फिर मोहर्रम का जलूस सब कुछ धूमधाम से प्रेम पूर्वक मनाया जाता है,

एतिहासिक तौर पर झांसी का इतिहास १२वीं शताब्दी से भी पुराना जान पडता है, लहर की देवी, कैमासन वाली माता ऐसे कई मन्दिर हैं जो उस काल खंड के बने हुए हैं, शहर क्षेत्र की हर गली स्वंय में एक इतिहास समेटे हुए है, ढप्पी और दाऊ के समोसे की पुरानी और प्रसिध्द दुकानें बताती हैं कि यहां के लोग समौसे का नाश्ता करना पसन्द करते थे, जो आज तक अनवरत तौर पर चला आ रहा है

झांसी में हर कोई इतना खास है कि खास लोगों कि कोई खास कद्र नहीं करता, मेरा व्यक्तिगत अनुभव है और घर के पुराने लोग बताते हैं कि दद्दा ध्यान चंद भी उनका अंतिम समय आम जीवन जीते हुये बिता गये, ये उनकी खासियत थी की वो खास नहीं बने या यहां की आम जनता की खासियत कि उन्हें खास बनने नहीं दिया, ये शोध का विषय हो सकता है, खैर वो आज भी हर झांसी वासी की नजर में एक हीरो हैं, और सभी उन का नाम बडे ही गर्व से लेते हैं

ऐसे ही कई खास लोग झांसी से संबन्ध रखते हैं, जिनका नाम इतिहास में अमर हुआ (मैथली शरण गुप्त, व्रंदावन लाल वर्मा आदि) किन्तु झांसी वासियों के बीच में उन्होंने कभी खास होने का प्रदर्शन नहीं किया, वैसे झांसी वासी इन सभी विभूतियों का दिल से बहुत आदर करती है, शायद बुन्देलखंडी अक्खडपन हो या दिखावा ना करने की आदत इस आदर का प्रदर्शन कोई कभी नहीं करता,

और कई अन्य खासियत इस प्रकार हैं जिनको दरकिनार नहीं किया जा सकता :

युवा लोग नियम से शाम को घर से बाहर रहते हैं और सिर्फ घूमने के लिये आधे शहर का चक्कर काट लेते हैं,
यहां हर दूसरा लडका नेता है हर तीसरा लडका रेल मंत्री है,

लोग चाहे पंजाबी, मराठी, कानपुरिया, बंगाली हों खुद के बुंदेलखंडी होने पर उतना ही गर्व करते हैं जितना रानी लक्ष्मी बाई वाले झांसी के निवासी होने का

यहां पर पुरानी और नयी संस्क्रती का संगम है, नये जमाने के जिम हैं तो पुराने जमाने के अखाडे भी हैं
आस पास में घूमने के लिये कई सारे मन्दिर, बांध और बाग बगीचे हैं

और हर किसी के पास कुछ खास दोस्त हैं यही वजह हैं जिन की वजह से सभी झांसी से अत्यधिक प्रेम करते हैं

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

मथुरा व्रंदावन सभी जगह पर राधे क्रष्ण

दिल्ली से मथुरा के लिये निकले दक्षिण एक्स्प्रेस से विचार था कि शनिवार रात में पहुंच कर रविवार को पूरे दिन जितना हो सकेगा मथुरा व्रंदावन घूमा जायेगाइस सफर में २ लोग साथ में थे कपिल और नीरज ट्रेन से लगभग २ घंटे में मथुरा पहुंच गये समय लगभग रात के १ बज रहे थे
स्टेशन से थोडा बाहर निकल कर होटल खोजा गया एक सस्ता और टिकाऊ कमरा लिया और सो गये दूसरे दिन सुबह सात बजे नहा धो कर निकले मन्दिरों के दर्शन के लिये आस पास कई सारी मिठाई कि दुकानों पर जलेबी और कचोडी बन रही थीं तो एक दुकान पर जहां थोडी ज्यादा भीड थी वहां पर जलेबी कचोडी के नाश्ते के साथ चाय का आनन्द लियाखानपान के लिये सही जगह का चुनाव उस दुकान पर होने वाली भीड से किया जा सकता है, जहां ज्यादा भीड होती है आम तौर पर वहां अच्छी चीज मिलती हैचाय नाश्ते के बाद द्वारिकाधीश जी के दर्शन करने के लिये गये, क्युं कि इस मन्दिर में दर्शन बहुत ही कम देर के लिये होते हैं इस लिये प्रयास था कि सब से पहले यहीं पर दर्शन किये जायें

द्वारिकाधीश मन्दिर में दर्शन करने के बाद यमुना जी के दर्शन किये और जन्मभूमि के दर्शन के लिये गये जन्मभूमि में दर्शन करने के लिये कई सारे चक्र की सुरक्षा व्यवस्था से गुजरना पडता है बाहर आसपास कई सारी दुकानें हैं पूजा के सामान कि, खानपान की, कपडों की वहां पर एक दुकान से हम तीनों ने हरे क्रष्णा लिखा हुआ कुर्ता लिया और दुकान पर ही टीशर्ट उतार कर वो कुर्ता धारण किया और निकल लिये गोविन्द जी कि नगरी में गोविन्द मय हो कर जन्मभूमि से थोडी सी हि दूरी से टेम्पो मिलते हैं व्रंदावन जाने के लिये हम भी टेम्पो से बांके बिहारी मन्दिर के दर्शन करने के लिये बढ चले व्रंदावन कि ओर मन्दिर से करीब १ कि.मी. पहले टेम्पो वाले ने उतारा आगे का सफर पैदल या रिक्से से किया जाना था, हम पैदल ही चल दिये, पतली सी सडक, सडक के दोनों ओर दुकानें और मन्दिर के जितने पास जाते जा रहे थे लोगों की भीड बढ्ती ही जा रही थी, बांकेबिहारी जी का मन्दिर बहुत ही पतली गली में है, और शायद इस मन्दिर में ही सब से ज्यादा दर्शनार्थी आते हैं वंहा पर मथुरा के प्रसिध्द पेडे का प्रसाद लिया और भीड में काफी धक्कामुक्की के बाद बांकेबिहारी जी के दर्शन करने के लिये बिहारी जी के सामने पहुंचे, यहां प्रसाद स्वयं के द्वारा बांके बिहारी जी को मानसिक भोग लगाया जाता है, हम ने भी प्रसाद का डिब्बा खोल कर भगवान को दिखाया और कहा आप के लिये ही लाये हैं आप भोग लगाइये
दर्शन के बाद फिर एक बार मन्दिर से बाहर निकलने के लिये भीड को चीरते हुए निकलना पडा बांकेबिहारी जी के मन्दिर की गली से बाहर सडक पर आने पर कई सारी चाट की दुकानें है, हम सभी ने आलू टिक्की और गोलगप्पे खाये कुछ देर वहीं घूमने पर देखा एक दुकान पर कुल्हड में लस्सी मिल रही है तो फिर कुल्हड की लस्सी का आनन्द लिया
अब रंगनाथ जी के दर्शन करने के लिये जाना था पैदल, वहां जाने के लिये कपिल के हमारा मार्ग दर्शन किया कई सारी पतली पतली गलियों से निकलने पर भजन याद आ गया 'व्रंदावन की कुन्द गलिन में श्री राधे राधे' आप ने भी जरुर सुना होगा कई सारी गलियों से गुजरने के बाद अंततः रंग जी के मन्दिर पहुंच गये, और हमें भी कपिल के मथुरा व्रंदावन क्षेत्र के बारे में जानकारी पर हमें विश्वास हो गया श्री रंग जी के दर्शन करे ये बडा ही भव्य और पुराना मन्दिर है, मन्दिर के सामने स्तंभ लगा हुआ है जैसा अधिकांश दक्षिण के मन्दिरों में होता है मन्दिर में जाने का द्वार भी काफी भव्य है
अब शाम के पांच बज चुके थे तो हम ने विचार किया कि एक बार फिर से जन्मभूमि के दर्शन करेंगे, वहां की बजार देखेंगे कुछ खरिद्दारी करेंगे और कोई ट्रेन मिल गयी तो रात में ही दिल्ली के लिये निकल लेंगे लगभग आधे घंटे में व्रंदावन से जन्मभूमि पहूंचे एक बार फिर से फुरसत से दर्शन किये बाहर से जान पहचान वालों को उपहार देने के लिये कुछ छोटी मोटी चीजें खरीदीं, ७ बज चुका था थोडी बहुत भूख भी लग आयी थी पास में एक रेस्त्रां में काफी पी और डोसा खाया इन्टरनेट पर जानकारी ली कि ताज एक्स्प्रेस लगभग डेढ घंटे की देरी से चल रही है मतलब आसानी से मिल सकती थी, हम ने होटल पहूंच कर सामान पैक कैया और समय पर स्टेशन पहूंचे आराम से टिकट ले कर ट्रेन में चढ गये, ताज पकड कर हम लोग काफी खुश थे क्युं कि १२ बजे तक घर पहुंच कर चैन की नींद ले पायेंगे