गुरुवार, 2 जनवरी 2014

बटेश्वर मेला: शुध्द देशी गांव का मेला

बटेश्वर के बारे में जब से पिछला पोस्ट लिखा है तब से ही सोच रहा हूं कि इस जगह के बारे में एक बहुत ही खास बात तो छोड ही दी। लेकिन ये बात इतनी खास है कि इस को पिछली पोस्ट की एक बात नहीं बनाना चाहता था। इस लिये अलग से एक पोस्ट लिखने का फैसला किया। वो बात है यहां पर हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज से बहुत बडा मेला लगता है। जिस में ऊंट, घोडे, गाय, बैल बहुत कुछ खरीदा बेचा जाता है। पूरे भारत में ये सोनपुर बिहार के बाद जानवरों का दूसरा सबसे बडा मेला है। जानवरों के मेले के बाद यहां पर आम जरुरतों के सामान के लिये मेला लगता है जिसको घूमने के लिये भी कम से कम आधा दिन तो चाहिये ही। सच मानिये यदी आप ने कभी कोई गांव का बडा मेला नहीं देखा तो ठेट ग्रामिण भारत को समझना आप के लिये मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है।
 
जानवरों का मेला


जानवरों का मेला

इन मेलों में जरूरत का हर छोटा बडा सामान मिल जाता है। ये मेला नहीं एक छोटा मोटा शहर होते हैं। और इन छोटे से शहरों में आप को कन्नौज के इत्र, सेलम की स्टील के बर्तन, कश्मीर के पश्मीना का शाँल, बनारस सिल्क सब कुछ मिल जायेगा।  
खैर जब हम बचपन में बाह से बटेश्वर मेला देखने जाते थे उस समय पापा बाह में पोस्टेड थे। तो हमेशा पहला काम बटेश्वर नाथ जी के दर्शन करना होता था, उस के बाद मेला मैदान में जाया जाता था। हमारा ध्यान हर माल २ रुपये या हर माल पांच रुपये बाली दुकानों पर रहता था जिन में आधे से ज्यादा चीजें खिलौना होती थीं। पता नहीं कब ये नियम बना शायद मेरे समझदार होने से पहले ही दीदी के लिये ही बन गया होगा कि हम को एक एक खिलौना हर माल दो या पांच रुपये बाली दुकान से दिलाया जाता था और एक एक महंगा खिलौना दिलाया जाता था। महंगा मतलब १५-२० रुपये का आज से २२-२३ साल पहले ये महंगा ही होता था। 
 
बटेश्वर मेला


बटेश्वर मेला

बटेश्वर मेला

मेला घूमने का एक तय तरीका होता था। शनिवार के दिन पापा हाफ डे होता था लंच कर के बटेश्वर के लिये निकलते थे। लगभग ३ बजे से शाम के ७-८ बजे तक मेला घूमते थे। कन्नौज के इत्र की दुकान पर और मेरठ की खादी के कपडे की दुकान पर जरूर जाया जाता था, मेले में कुछ विश्व प्रसिध्द रेस्तरां भी लगते थे बीच में भूख लगने पर चाट, छोले भटूरे कुछ भी खाया जाता था। 
बटेश्वर मेले का 5 स्टार रेस्तरां

वहां पर सर्कस भी लगते थे जिस में सारे करतब कुत्ते ही दिखाते थे, अलग अलग तरीके के इमेज बाले शीशे भी लगते थे।
एक बार वहां हम लोगों ने जादूगर पी सी सरकार का जादू भी देखा था। उस समय सुना था की वो बहुत बडे जादूगर हैं खैर अभी तक जितने भी मैजिक शो देखे उन में सबसे बढिया तो वो शो ही था। 

बटेश्वर का मेला आदत ही बन गया था जैसे हर साल दिवाली होली आती थी वैसे ही ये मेला भी हर साल देखने जाना पक्का सा हो गया था, पर ये आदत ७-८ साल से ज्यादा बनती उस से पहले ही पिता जी का ट्रांसफर हो गया। 
इस बार कम से कम १८-१९ साल बाद एक बार फिर से बटेश्वर का मेला देखने गये थे, मेले में कुछ नहीं बदला था। वही कन्नौज का इत्र, हाथरस की हींग, मेरठ की खादी, बनारस की साडी, सब कुछ वैसा ही था। बस हर माल २-५ रुपये की जगह १०-२० रुपये हो गया था। पर फिर भी इस मेले की बराबरी कोई शहरी मेला, महोत्सव नहीं कर सकता।   


 गांव के शापिंग माल देखने हों तो यहां आइये। और सोचिये कि यहां ऐसा कौन सा जरूरत का सामान नहीं मिलता कि हमें वालमार्ट की जरूरत पड गयी।

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

बटेश्वर: थोडे में बहुत कुछ, बटेश्वर मन्दिर , तीर्थ, यमुना का किनारा, ग्रामिण परिवेश, जैन मन्दिर

आगरा से फतेहाबाद होते हुए ७० कि मी दूर बाह एक छोटा कस्बा है वहां से लगभग १० कि मी दूरी पर बटेश्वर धाम हैबटेश्वर में यमुना नदी के किनारे पर १०१ शिव मन्दिर हैं जो शायद बनाये जाने के समय पर १०८ बनाये गये होंगे। बटेश्वर को समस्त सनातन धर्म के तीर्थों का भांजा कहा जाता है तथा शिव मन्दिर और श्रंखलाबध्द घाट होने की समानताओं की वजह से इसे भदावर की काशी भी कहा जाता है। इन उपमाओं के द्वारा इस तीर्थ के महत्व को भी समझा जा सकता है।
बटेश्वर धाम में १०१ शिव मन्दिर श्रंखलाबध्द तरीके से यमुना नदी के किनारे घाट पर बने हुये हैं। जिन में से मुख्य मन्दिर बटेश्वर नाथ जी, गौरी शंकर मन्दिर हैं।
बटेश्वर नाथ जी मन्दिर यहां का मुख्य मन्दिर है इस मन्दिर में गर्भ ग्रह में शिवलिंग रूप में स्थापित हैं। इस मन्दिर को कई बार आताताइयों ने तोडा और बार बार इस का निर्माण कराया गया। यह मन्दिर लगभग ३०० वर्ष पुराना है।



गौरी शंकर मन्दिर में शिव पार्वती और गणेश की दुर्लभ मनुष्य आकार की मूर्ती है।

अन्य दर्शनीय मन्दिर पातालेश्वर मन्दिर और मणीदेव मन्दिर हैं।
बटेश्वर में यहां का ग्रामिण परिद्र्श्य कलरव करती हुयी यमुना नदी, किनारे पर बने हुए मिट्टी के बडे बडे टीले जिस को हम लोग बीह्ड के नाम से जानते हैं बहुत कुछ है देखने के लिये




शौरीपुर जैन तीर्थ बटेश्वर नाथ जी के मन्दिर से ३-४ कि.मी. की दूरी पर है यहां पर भगवान नैमीनाथ जी का जन्म हुआ था इस स्थान को सिध्द क्षेत्र भी कहा जाता है


 

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

जब घूमना हो कुछ खास तो ललितपुर जाइये



इस बार एतिहासिक धरोहरों को देखने की इच्छा हुई ऐसी जगहों की जानकारी ढुंढते हुए मैंने ललितपुर जाने का निर्णय किया। इस के बाद कोशिश शुरु हुई की इस यात्रा में साथ जाने को किसी मित्र को तैयार करना। ललितपुर से जुडे कुछ फोटोग्राफ और जानकारियां दोस्तों को दिखाने के बाद कपिल जी को इस यात्रा पर चलने के लिये राजी करने में सफलता मिली

सप्ताहांत यात्रा के हिसाब से शुक्रवार रात दिल्ली से निकल कर शनिवार सुबह ललितपुर पहुंचना था और रविवार रात को ललितपुर से निकल कर सोमवार सुबह दिल्ली पहुंचना था


बस शुक्रवार रात को दिल्ली से ललितपुर का सफर करने के लिये रेल रिजर्वेशन का प्रयास शुरू किया अमृतसर-लोकमान्य तिलक एक्स्प्रेस में टिकिट बुक कराया गया ये ट्रेन थोडी थकाऊ है दक्षिण एक्सप्रेस
बेहतर विकल्प थी और इस प्रकार शनिवार को सुबह बजे ललितपुर स्टेशन पर पहुंच गये
। ये अच्छा हुआ कि वापसी का रिजर्वेश दक्षिण एक्सप्रेस में मिल गया था। ललितपुर स्टेशन उतरने के बाद होटल ढूंढने का प्रयास किया और स्टेशन के पास ही एक कामचलाऊ टाइप के होटल में ठहर गयेनहा धो कर होटल से बाहर निकले पास की ही एक दुकान से जलेबी और समोसे का नाश्ता किया, और चाय पी फिर निकल पडे औटो वालों से मोलभाव करने, एक भाईसाहब ५०० रुपये में तैयार हुए और हम निकल पडे देवगढ की ओर रास्ते में जंगल के बीच में से लहराती हुई सडक ने मन मोह लिया, बेतवा नदी के तट पर स्थित देवगढ में घूमने के लिये कई सारी जगह हैं, जिन में दशावतार मन्दिर, जैन मन्दिर समूह, राजघाटी नाहरघाटी, सिद्ध गुफा, वराह मन्दिर दर्शनीय हैं
वराह मन्दिर ५वीं या ६वीं सदी का बना हुआ मन्दिर है जिस में मुख्य मूर्ती भगवान विष्णू के वराह अवतार की है जो अब खंडित हो चुकी है
कुरैंयाबीर का मन्दिर लगभग ११०० वर्ष पुराना शिव मन्दिर है, वहां बताई गई जानकारी के अनुसार ये मन्दिर के ऊपर बना शिखर मन्दिरों के ऊपर शिखर बनाने का प्राचीनतम उदाहरण है

दशावतार मन्दिर यह मन्दिर ५वीं सदी में गुप्तकालीन राजाओं के द्वारा बनबाया गया था, ये मन्दिर भगवान विष्णू को समर्पित है, मन्दिर की दीवारों पर वेष्णव धर्म के अनुसार भगवान विष्णू से जुडी हुई कथायें उकेरी गयी हैं, इस के अतिरिक्त यहां दाम्पत्य प्रेम के द्रश्य भी उकेरे गये हैं
जैन मन्दिर समूह लगभग १०० मीटर ऊंचे वनाच्छादित पर्वत श्रंखला में ३१ जैन मन्दिर हैं, यहां हजारों की संख्या में जैन धर्म से जुडी मूर्तियां हैं

देवगढ के समीप बहती बेतबा नदी

दशावतार मन्दिर

दशावतार मन्दिर

जैन मन्दिर देवगढ

 

 यहां घूमने के बाद मेरा विचार था कि कुछ स्थानों को आप चाह कर भी कभी पूरा नहीं देख सकते हमेशा ही लगेगा कि कुछ छूट गया पर अब शाम के ४ बज चुके थे और ललितपुर लौटना था। इस लिये हो लिए बापस ललितपुर की ओर

ललितपुर पहुंचने के बाद स्टेशन के पास के एक रेस्तरां में पेटपूजा की और उस के बाद ही होटल में पहुंच कर कुछ देर आराम करने पर विचार किया

होटल से शाम को ६:३० बजे कपिल के कहने पर हम दोनों चाय पीने के लिये निकले, चाय पीते हुए शहर के बारे में जानकारी प्राप्त की तो मालूम पडा कि पास में ही बाबा सदनशाह की मजार है
। बाबा सदनशाह शिव जी के भक्त थे उन के बारे में भक्तमाल की कथा में भी जिक्र किया गया है। तो जानकारी ले कर हम भी बाबा सदनशाह जी कि मजार के दर्शन करने गये, बापस लौटते हुए हम दोनों ने रात्री भोजन किया और दुसरे दिन के लिये औटो को बुक किया और होटल पहुंच गये सोने के लिये

सुबह उठते हुए मेरे और कपिल के बीच कौन बाद में उठेगा इस बात की स्पर्धा चल रही थी
। लेकिन औटो बाले भाई का फोन आने पर कि वह ३० मिनट में पहुंच जायेगा मैं हार कर पहले उठा और नहा धो कर तैयार हुआ फिर कपिल भाई ने भी बिस्तर छोडा नहाये धोये। सबसे खास बात ये कि औटो वाले भाई भी सवा घंटे के बाद में आये। चलिये उन्होंने फोन कर के कम से कम हम दोनों को तो उठने के लिये मजबूर कर ही दिया, अब नाश्ता कर के दुधई, चांदपुर और पाली घूमने जाना था
दुधई और चांदपुर में ९वीं से १२वीं सदी के बने हुए मन्दिर व मन्दिरों के अवशेष फैले हुए हैं सबसे पहले पाली में नीलकन्ठेश्वर महादेव के दर्शन किये ये मन्दिर ४०० से अधिक वर्ष पहले बुन्देला राजा ने बनबाया था इस मन्दिर में सदा शिव भगवान की तीनमुखी विशाल प्रतिमा है


दुधई के जंगलों मे पहाड को काट कर बनाई गयी नरसिंह भगवान की प्रतिमा है जिन का मुख शेर का और शरीर मनुष्य का है और वो हिरण्यकश्यप का वध करते हुए दिखाये गये हैं, इस प्रतिमा की ऊंचाई ३५ फुट से अधिक है

दुधई
दुधई


दुधई

नरसिंह भगवान की प्रतिमा


चांदपुर
चांदपुर
चांदपुर

नीलकन्ठेश्वर महादेव

शाम को ५ बजे ललितपुर की ओर निकल दिये। ललितपुर के आसपास फैली पुरातात्विक धरोहरों का थोडा सा ही हिस्सा देख पाये थे। यहां बहुत कुछ है देखने के लिये पर शायद जो सबसे खास था वो सब देख लिया था इस बात की संतुष्टी थी रात में ८ बजे दक्षिण एक्स्प्रेस से दिल्ली की ओर प्रस्थान करना था
ललितपुर जहां एक ओर प्रक्रति के उन्मुक्त व अल्हड सोन्दर्य से धनी है तो दूसरी ओर एतिहासिक एवं पुरातात्विक सम्पदा से अत्यंत सम्रध्द है। इतिहास के गर्भ में छिपे रहस्यों को उजागर करते अत्यंत प्राचीन मन्दिर, प्रस्तर मूर्तियां एवं कलाक्रतियां हैं, ललितपुर के चारों ओर घूमने के लिये बहुत कुछ है देवगढ, राजघाटी, दुधई चांद्पुर, मदनपुर आदि इन सभी जगहों पर इतिहास स्वंय बोलता हुआ प्रतीत होता है